ओंकार वर्मा का दिल धक्क्स हो गया जब उसने फोन पर अपनी छोटी बहन नैंसी की आवाज़ में अजीब-सी घबराहट सुनी। वह सिसकियों में बता रही थी, *"भैया, अमरजीत गायब हैं... उनका फोन बंद है। कंपनी वाले कहते हैं, वे नीदरलैंड्स गए हैं, लेकिन उनका पासपोर्ट तो घर पर ही पड़ा है!"* नैंसी की हँसी जो कभी पूरे घर को रोशन कर देती थी, आज डर में डूबी हुई थी। ओंकार ने उसे शांत करने की कोशिश की, मगर खुद उसकी साँसें तेज हो गईं।
### लंदन का सन्नाटा
कुछ दिन बाद जब ओंकार लंदन पहुँचा, तो नैंसी का घर सुनसान पड़ा था। खाना मेज पर सूख रहा था, बच्चों के खिलौने बिखरे थे, पर कोई नहीं था—न नैंसी, न उसके दोनों बच्चे, न माँ चरणजीत। ओंकार के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। *"यह कैसे हो सकता है? सब गायब...?"* उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया।
### एक फिल्मी प्रेमकथा का अंत
नैंसी और अमरजीत चौहान की प्रेमकथा किसी सिनेमा की कहानी जैसी थी। 21 साल की उम्र के फासले को प्यार ने पाट दिया था। लंदन में फलों के आयात-निर्यात का उनका व्यवसाय, 'सीबा फ्रेट', संघर्षों से खड़ा हुआ था। घर खुशियों से भरा था, लेकिन नैंसी का मन भारत लौटने को बेचैन रहता। *"बच्चों को यहाँ की पढ़ाई ठीक नहीं लगती,"* वह अक्सर कहती। जब दूसरे बेटे रविंद्र का जन्म हुआ, तो नैंसी ने माँ चरणजीत को बुला लिया। घर में बच्चों की किलकारियाँ और दाल-रोटी की खुशबू फैल गई थी।
### वह शापित रात
13 फरवरी 2003 की शाम को नैंसी का फोन फिर आया—*"अमरजीत कल से लापता हैं!"* उसी रात, अमरजीत का एक वॉइसमेल आया: *"मैं नीदरलैंड्स में हूँ, जल्दी लौटता हूँ।"* पर नैंसी ने बताया, *"भैया, वे अंग्रेजी में कभी बात नहीं करते..."* अगले दिन तक, पूरा परिवार गायब था। न बच्चों के जूते, न चरणजीत की गुरुग्रंथ साहिब... सब कुछ वैसे का वैसा छोड़कर।
### खौफनाक सच
ओंकार ने पुलिस को घसीटकर लाया: *"मेरी बहन बिना बताए कहीं नहीं जाती!"* कुछ हफ्तों बाद, समुद्र तट पर अमरजीत का शव मिला—मुँह पर टेप, हाथ बँधे, सिर पर गहरी चोट। फिर नैंसी और चरणजीत के शव भी मिले, पर दोनों बच्चे रहस्य बने रहे। जाँच में पता चला, 'सीबा फ्रेट' का नया मालिक **केनेथ रीगन**, जेल से छूटा एक अपराधी था, जिसे अमरजीत ने नौकरी दी थी। 13 फरवरी को रीगन अमरजीत के साथ था।
### न्याय का साया
ओंकार की जिद ने पुलिस को हिला दिया। **बेलिंडा** नामक एक महिला ने बताया कि रीगन उसके खेत में कुछ गाड़ रहा था। खुदाई में नैंसी के गहने और अमरजीत के बाल मिले। आखिरी सबूत था अमरजीत के मोज़े में छिपा वह चिट्ठी, जिस पर रीगन का पता लिखा था। कोर्ट में ओंकार चीखा: *"इन्होंने मेरी बहन के बच्चों तक को नहीं छोड़ा!"* रीगन को उम्रकैद मिली, पर ओंकार के लिए यह काफी नहीं था।
### आज भी एक सवाल
आज भी ओंकार उन दोनों मासूम बच्चों की तस्वीरें संभालकर रखता है, जिनकी हँसी उसके जीवन से गायब हो गई। कोर्ट का फैसला आ चुका, मगर उसका दिल पूछता है—*"वे बच्चे कहाँ हैं?"*
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**सारांश:** एक पारिवारिक रहस्य से शुरू हुई यह कहानी अपराध, विश्वासघात और अधूरे न्याय की मार्मिक दास्तान बन जाती है। ओंकार की त्रासदी हमें याद दिलाती है कि कुछ सवालों के जवाब शायद कभी नहीं मिलते।