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गुर्जर प्रतिहार राजवंश का इतिहास

गुर्जर प्रतिहार राजवंश 8वीं से 11वीं शताब्दी तक उत्तर भारत में शासन करने वाला एक महत्वपूर्ण राजवंश था। उनकी उत्पत्ति मध्य एशिया से मानी जाती है और 6वीं शताब्दी के आसपास वे भारत आकर बस गए। धीरे-धीरे उन्होंने अपनी शक्ति बढ़ाई और 7वीं शताब्दी में नागभट्ट प्रथम के नेतृत्व में उन्होंने कन्नौज पर अपना शासन स्थापित किया। नागभट्ट प्रथम (730-756): नागभट्ट प्रथम ने गुर्जर-प्रतिहार राजवंश की स्थापना की। उन्होंने 730 ईस्वी में मालवा के उज्जैन शहर पर शासन करना शुरू किया। 738 ईस्वी में, उन्होंने अरबों को हराया, जो सिंध पर आक्रमण कर रहे थे। 756 ईस्वी में, उनकी मृत्यु के बाद, उनके पुत्र कक्कुस्थ और देवराज ने संयुक्त रूप से शासन किया। कक्कुस्थ और देवराज (756-775): इन दोनों भाइयों ने मिलकर गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य का विस्तार किया। उन्होंने कन्नौज पर कब्जा कर लिया, जो उस समय उत्तर भारत का एक महत्वपूर्ण शहर था। 775 ईस्वी में, कक्कुस्थ की मृत्यु हो गई, और देवराज ने अकेले शासन करना शुरू किया। वत्सराज (775-800): वत्सराज गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के सबसे शक्तिशाली शासकों में से एक थे। उन्होंने पश्चिमी भारत के कई...

राजपूत - जाति का इतिहास

  राजपूत विदेशी आक्रमणकारियों के वंशज है। 5वीं और 6वीं शताब्दी में, भारत पर हूण, शक, और पल्लव जैसे विदेशी आक्रमणकारियों ने आक्रमण किया। इन आक्रमणकारियों ने कुछ भारतीय महिलाओं से शादी की, और उनके वंशज राजपूत बन गए। राजपूत शक-कुषाण तथा हूण आदि विदेशी जातियों की संतान है। इस  लेख  में, हम राजपूत  के जीवन और उपलब्धियों पर चर्चा करेंगे। हम उनके शासनकाल की प्रमुख घटनाओं, उनकी विजयों, उनके सांस्कृतिक योगदानों और उनके उत्तराधिकार पर प्रकाश डालेंगे। हूण एक प्राचीन असभ्य वंश था जो मध्य एशिया से उत्पन्न हुआ था। उनका निवास स्थान पूर्वी चीन के पास था। हूण प्रायः मंगोल जाति से सम्बन्धित थे और सिथियनों की एक उप-शाखा थीं। दूसरी शताब्दी ई0पू0 में, आजीविका के साधनों की खोज में, हूण अपने मूल निवास स्थान से निकलकर दो शाखाओं में विभाजित हुए - पहली शाखा ने वोल्गा नदी के माध्यम से यूरोप में प्रवेश किया और दूसरी शाखा आक्सस की घाटी में बस गई। भारत में आए हूणों का संबंध इसी दूसरी शाखा से था। आक्सस के हूणों ने ईरान में तत्कालीन राजा फिरोज को पराजित करने के बाद काबुल में कुषाण-राज्य को नष्ट किय...

नागभट्ट प्रथम: गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के निर्माता | भारत का इतिहास

  नागभट्ट प्रथम गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के संस्थापक थे। उन्होंने 8वीं शताब्दी में भारत के उत्तरी भाग पर शासन किया। इस में, हम नागभट्ट प्रथम के जीवन, उपलब्धियों और उनके शासनकाल के बारे में जानेंगे। नागभट्ट प्रथम, प्रतिहार वंश के प्रसिद्ध शासक थे जिन्होंने 730 ईस्वी से 760 ईस्वी तक शासन किया। उनके शासनकाल में गुर्जर प्रतिहारों ने अपनी शक्ति और प्रभाव का विस्तार किया और एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरे।  इस साम्राज्य का विस्तार उत्तर भारत के अधिकांश भागों में था।नागभट्ट प्रथम के साम्राज्य की सीमाएं उत्तर में हिमालय, पश्चिम में सिंधु नदी, पूर्व में गंगा नदी और दक्षिण में नर्मदा नदी तक थीं।इसमें राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ भाग शामिल थे। नागभट्ट प्रथम का राज्य मंडोर (राजस्थान) से था।उन्होंने मंडोर को अपनी राजधानी बनाया।नागभट्ट प्रथम के शासनकाल में राज्य की स्थिति मजबूत थी। चामुंडा पर विजय: यह युद्ध 730 ईस्वी के आसपास हुआ था।नागभट्ट प्रथम ने चामुंडा शासक को हराकर भीनमाल (जालौर) पर अपना शासन स्थापित किया। यह उनकी पहली महत्वपूर्ण विजय थी। चालु...

राष्ट्रकूट वंश : ध्रुव धारावर्ष

ध्रुव धारवर्ष, राष्ट्रकूट वंश के एक महान शासक थे। इस लेख में, हम उनके जीवन, उनकी उपलब्धियों और उनके शासनकाल के बारे में जानेंगे। यदुवंशी क्षत्रिय : धुर्वा  जिसे अंग्रेजी में " Dhruva Dynasty " कहा जाता है, भारत का एक प्राचीन  यदुवंशी क्षत्रिय वंश था। इसका शासनकाल 850 ईस्वी के आसपास था।धुर्वा वंश का शासनकाल 8वीं शताब्दी के अंत से 10वीं शताब्दी के मध्य तक रहा।धुर्वा वंश की राजधानी देवगिरि (आधुनिक दौलताबाद) थी।धुर्वा वंश अपने शासनकाल के दौरान एक शक्तिशाली राज्य था।धुर्वा वंश का साम्राज्य उत्तर में नर्मदा नदी से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक और पूर्व में गोदावरी नदी से लेकर पश्चिम में अरब सागर तक फैला हुआ था।राष्ट्रकूट वंश के शासकों ने कई महत्वपूर्ण मंदिरों और स्मारकों का निर्माण करवाया। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण निर्माणों में शामिल हैं: एलोरा की गुफाएँ: एलोरा की गुफाएँ महाराष्ट्र में स्थित 34 हिंदू, बौद्ध और जैन मंदिरों का एक समूह है। इनमें से कुछ गुफाओं का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के शासनकाल में हुआ था। एलोरा का कैलाशनाथ मंदिर: एलोरा का कैलाशनाथ मंदिर एक विशाल हिंदू मंदिर है...

गोविंद तृतीय - राष्ट्रकूट साम्राज्य का सबसे महान शासक | भारतीय इतिहास

इस लेख में, हम राष्ट्रकूट साम्राज्य के सबसे महान शासक गोविंद तृतीय के जीवन और कार्यों के बारे में जानेंगे। गोविंद तृतीय ने 793 से 814 ईस्वी तक शासन किया और अपने साम्राज्य को उत्तर और दक्षिण भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विस्तारित किया। उन्होंने पल्लवों, प्रतिहारों, गुर्जरों और अन्य राजवंशों के साथ युद्ध किया और अपनी शक्ति और प्रभाव को दृढ़ किया। उन्होंने भी धर्म, साहित्य, कला और वास्तुकला के क्षेत्र में अपने साम्राज्य में विकास को बढ़ावा दिया। गोविंद तृतीय राष्ट्रकूट वंश के यदुवंशी क्षत्रिय वंश के एक महान राजा थे। गोविंद तृतीय के पिता: ध्रुव: माता: कनकवती: भाई: कम्बरस : पत्नी: गामुन्दाब्बे और पुत्र: अमोघवर्ष थे। प्रथमगोविंद तृतीय 19 वर्ष की आयु में सिंहासन पर बैठे।उन्होंने 793 से 814 ईस्वी तक 21 वर्षों तक शासन किया । गोविंद तृतीय एक महान योद्धा और प्रशासक थे। जिन्होंने राष्ट्रकूटों को एक शक्तिशाली साम्राज्य में बदल दिया था।उनका जन्म गुजरात के मणिपुर में हुआ था। गोविंद तृतीय के साम्राज्य की सीमाएं: उत्तर में: कन्नौज दक्षिण में: केप कोमोरिन पूर्व में: बंगाल पश्चिम में: अरब सागर तक फैली ह...

भोज प्रथम : प्रतिहार साम्राज्य, भारत का इतिहास, सम्राट, योद्धा, कला संरक्षक

भोज प्रथम (805-835 ईस्वी) एक शक्तिशाली राजा थे।भोज के साम्राज्य की सीमाएं उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक और पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में गंगा नदी तक फैली हुई थीं।भोज की राजधानी कन्नौज  थी। कन्नौज गंगा नदी के तट पर स्थित है, जो उत्तर प्रदेश राज्य में है।कन्नौज प्राचीन काल से ही एक महत्वपूर्ण शहर रहा है। यह मौर्य, गुप्त और हर्षवर्धन जैसे कई महान राजवंशों की राजधानी रहा है।आज भी कन्नौज में कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल हैं, जो पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इनमें अजयपाल का किला, जैन मंदिर और त्रिवेणी संगम शामिल हैं। इस साम्राज्य में उत्तर भारत के अधिकांश भाग शामिल थे, जिसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली शामिल हैं।भोज ने 8वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शासन किया। उनके शासनकाल की अवधि निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है, लेकिन यह अनुमान लगाया जाता है कि उन्होंने लगभग 30 वर्षों तक शासन किया।भोज ने कई मंदिरों और स्मारकों का निर्माण करवाया था। इनमें से कुछ प्रसिद्ध निर्माणों में धारानगरी का भोज-शाला: आज, भोज-शाला के अवशेष धार में देखे जा सक...

विजयादित्य - गंगावाड़ी राज्य के शासक (840 ई.)

  विजयादित्य, यदुवंशी क्षत्रिय वंश के एक शक्तिशाली राजा थे जिन्होंने 840 ईस्वी के आसपास गंगवाड़ी राज्य पर शासन किया। इस में, हम उनके जीवन, उपलब्धियों और उनके वंश के महत्व पर प्रकाश डालेंगे। विजयादित्य एक प्राचीन यदुवंशी क्षत्रिय वंश थे,। जो भगवान कृष्ण के वंशज थे। जिन्होंने धुर्वा वंश का नेतृत्व किया था। उन्होंने 840 ईस्वी के आसपास) उन्होंने गंगवाड़ी राज्य पर शासन किया।गंगवाड़ी राज्य की राजधानी मान्यखेत, कर्नाटक का एक प्राचीन शहर है. यह हैदराबाद से लगभग 135 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है. इसेआधुनिक समय में मालखेड़ के नाम से जाना जाता है.विजयादित्य के शासनकाल में गंगवाड़ी राज्य एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य था। राज्य की सीमाएं उत्तर में कृष्णा नदी, दक्षिण में तुंगभद्रा नदी, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में पश्चिमी घाट तक फैली हुई थीं। उनके शासनकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण निर्माण कार्य हुए, जिनमें शामिल हैं:-  विजयादित्येश्वर मंदिर: कर्नाटक के मंगलोर में स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर अपनी भव्य वास्तुकला और शिल्पकला के लिए जाना जाता है।   नृसिंह ...